मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी है और शौर भी है, तूने देखा ही नहीं, आँखों में कुछ और भी है। - Gulzar Shayari

मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी है और शौर भी है, तूने देखा ही नहीं, आँखों में कुछ और भी है।

Gulzar Shayari