तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ  - Akhbaar Shayari

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

Akhbaar Shayari