मौसम-ए-गुल में तो आ जाती है काँटों पे बहार, बात तो जब है ख़िजाँ में गुल-ए-तर पैदा कर! - Bahaar Shayari

मौसम-ए-गुल में तो आ जाती है काँटों पे बहार, बात तो जब है ख़िजाँ में गुल-ए-तर पैदा कर!

Bahaar Shayari