संभाले नहीं संभलता है दिल, मोहब्बत की तपिश से न जला, इश्क तलबगार है तेरा चला आ, अब ज़माने का बहाना न बना।
 - New Shayari

संभाले नहीं संभलता है दिल, मोहब्बत की तपिश से न जला, इश्क तलबगार है तेरा चला आ, अब ज़माने का बहाना न बना।

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