गुज़रे दिनों की भूली हुई बात की तरह, आँखों में जागता है कोई रात की तरह, उससे उम्मीद थी की निभाएगा साथ वो, वो भी बदल गया मेरे हालात की तरह।
टूटे हुए दिल ने भी उसके लिए दुआ मांगी, मेरी साँसों ने हर पल उसकी ख़ुशी मांगी, न जाने कैसी दिल्लगी थी उस बेवफा से, के मैंने आखिरी ख्वाहिश में भी उसकी वफ़ा मांगी।
फूलों के साथ काँटे नसीब होते हैं, ख़ुशी के साथ ग़म भी नसीब होता है, यूँ तो मजबूरी ले डूबती हर आशिक को, वरना खुशी से बेवफ़ा कौन होता है!
प्यार किया था तो प्यार का अंजाम कहाँ मालूम था, वफ़ा के बदले मिलेगी बेवफाई कहाँ मालूम था, सोचा था तैर के पार कर लेंगे प्यार के दरिया को, पर बीच दरिया मिल जायेगा भंवर कहाँ मालूम था।
ये शायरी की महफ़िल बनी है आशिकों के लिये, बेवफाओं की क्या औकात जो शब्दों को तोल सके।
खुदा ने पूछा क्या सज़ा दूँ उस बेवफा को, दिल ने कहा मोहब्बत हो जाए उसे भी।
जब तक न लगे बेवफाई की ठोकर, हर किसी को अपनी पसंद पर नाज़ होता है।
तेरी यादें हर रोज आ जाती है मेरे पास, लगता है तुमने बेवफाई नहीं सिखाई इनको।
तेरी बेवफाई ने मेरा ये हाल कर दिया है, मैं नहीं रोती लोग मुझे देख कर रोते हैं।
सिखा दी बेवफ़ाई करना ज़ालिम ज़माने ने तुम्हे, तुम जो भी सीख जाते हो हम पर ही आजमाते हो।