मुस्कुरा देता हूँ अक्सर देखकर पुराने खत तेरे, तू झूठ भी कितनी सच्चाई से लिखती थी। - bewafa shayari

मुस्कुरा देता हूँ अक्सर देखकर पुराने खत तेरे, तू झूठ भी कितनी सच्चाई से लिखती थी।

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