Lord Mahavir Quotes

Lord Mahavir Quotes with Images

Lord Mahavir Quotes in Hindi

अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है। जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे ख़त्म कर देता हो।

किसी के सिर पर गुच्छेदार या उलझे हुए बाल हों या उसका सिर मुंडा हुआ हो, वह नग्न रहता हो या फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो। लेकिन अगर वो झूठ बोलता है तो ये सब व्यर्थ और निष्फल है।

जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं। वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और तप का पालन करने के बावजूद निर्वाण प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।

एक भिक्षुक को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानी व्यक्ति की ही तरह होगा। इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए।

कीमती वस्तुओं की बात दूर है, एक तिनके के लिए भी लालच करना पाप को जन्म देता है। एक लालच रहित व्यक्ति, अगर वो मुकुट भी पहने हुए है तो पाप नहीं कर सकता।

एक चोर न तो दया और ना ही शर्म महसूस करता है, ना ही उसमें कोई अनुशासन और विश्वास होता है। ऐसी कोई बुराई नहीं है जो वो धन के लिए नहीं कर सकता है।

अगर हमने कभी किसी के लिए अच्छा काम किया है तो उसे भूल जाना चाहिए और अगर कभी किसी ने हमारा बुरा किया है तो हमें उसे भी भूल जाना चाहिए।

आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत.

जिस तरह से आग को ईंधन से नहीं बुझाया जा सकता है, उसी तरह कोई भी जीवित प्राणी तीनों लोकों की सारी धन दौलत से संतुष्ट नही हो सकता है।

किसी भी व्यक्ति के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और खुद भी शांति से जीने की कोशिश करो। तभी आपका कल्याण होगा।

मुझे समता को प्राप्त करने के लिए अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दुःख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें।

सभी जीवों की आत्मा केवल अकेले ही आती है और अकेले ही चली जाती है। उसका न कोई साथ देता है और न ही उसका कोई दोस्त बनता है।

किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को ना पहचानना है और यह सिर्फ खुद को जानकर ही सही की जा सकती है।

जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है।

खुद से लड़ो, बाहर के शत्रुओं से क्या लड़ना। वह व्यक्ति जो खुद पर विजय प्राप्त कर लेता है उसे ही आनंद की प्राप्ति होती है।

वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।

सुख-दुःख, आनंद और कष्ट में हमें हर प्राणी के प्रति वैसी ही भावना रखनी चाहिए। जैसे कि हम हमारे प्रति रखते हैं।

इंसान खुद अपने दोष के कारण ही दुखी रहते हैं। अगर वो चाहें तो अपनी गलती सुधार कर खुश रह सकते हैं।

एक सच्चा मनुष्य मां के समान विश्वसनीय, गुरु की तरह सम्माननीय और ज्ञानी व्यक्ति की तरह प्रिय होता है।

जिस प्रकार हर कोई जलती हुई अग्नि से दूर रहता है उसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध मनुष्य से दूर रहती है।

कर्म के पास ना कोई कागज है और ना ही कोई किताब है। फिर भी उसके पास सारे जगत का हिसाब है।

किसी भी जीवित प्राणी को मारना नहीं चाहिए और ना ही उस पर शासन करने का प्रयत्न करना चाहिए।

आपको किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही आपको छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।

जो जागरूक नहीं है उसे सभी दिशाओं से डर है। जो सतर्क है उसे कहीं से कोई भी डर नहीं है।

जीतने पर कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए और ना ही कभी हारने पर दुख करना चाहिए।

साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।

अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म होता है, जो सभी जीवों के कल्याण की कामना करता है।

वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है।

केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता का अनुभव कर सकता है।

स्वयं पर विजय प्राप्त करना लाखों करोड़ों दुश्मनों पर विजय पाने से बेहतर है।

इस दुनिया में हर एक प्राणी स्वतंत्र है। कोई भी किसी और पर निर्भर नहीं करता है।

जीव हत्या ना करें, किसी को ठेस न पहुंचाएं। अहिंसा ही सबसे महान धर्म है।

हर एक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है, आनंद बाहर से नहीं आता है।

केवल सत्य ही इस संसार का सार है।

हर एक प्राणी का सम्मान करना ही अहिंसा कहलाती है।

शांति और आत्म-नियंत्रण ही अहिंसा है।

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 अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है। जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे ख़त्म कर देता हो।
 किसी के सिर पर गुच्छेदार या उलझे हुए बाल हों या उसका सिर मुंडा हुआ हो, वह नग्न रहता हो या फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो। लेकिन अगर वो झूठ बोलता है तो ये सब व्यर्थ और निष्फल है।
 जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं। वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और तप का पालन करने के बावजूद निर्वाण प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।
एक भिक्षुक को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानी व्यक्ति की ही तरह होगा। इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए।
कीमती वस्तुओं की बात दूर है, एक तिनके के लिए भी लालच करना पाप को जन्म देता है। एक लालच रहित व्यक्ति, अगर वो मुकुट भी पहने हुए है तो पाप नहीं कर सकता।
 एक चोर न तो दया और ना ही शर्म महसूस करता है, ना ही उसमें कोई अनुशासन और विश्वास होता है। ऐसी कोई बुराई नहीं है जो वो धन के लिए नहीं कर सकता है।
 अगर हमने कभी किसी के लिए अच्छा काम किया है तो उसे भूल जाना चाहिए और अगर कभी किसी ने हमारा बुरा किया है तो हमें उसे भी भूल जाना चाहिए।
आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत.
 जिस तरह से आग को ईंधन से नहीं बुझाया जा सकता है, उसी तरह कोई भी जीवित प्राणी तीनों लोकों की सारी धन दौलत से संतुष्ट नही हो सकता है।
किसी भी व्यक्ति के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और खुद भी शांति से जीने की कोशिश करो। तभी आपका कल्याण होगा।
मुझे समता को प्राप्त करने के लिए अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दुःख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें।
सभी जीवों की आत्मा केवल अकेले ही आती है और अकेले ही चली जाती है। उसका न कोई साथ देता है और न ही उसका कोई दोस्त बनता है।
 किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को ना पहचानना है और यह सिर्फ खुद को जानकर ही सही की जा सकती है।
जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है।
खुद से लड़ो, बाहर के शत्रुओं से क्या लड़ना। वह व्यक्ति जो खुद पर विजय प्राप्त कर लेता है उसे ही आनंद की प्राप्ति होती है।
वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।
सुख-दुःख, आनंद और कष्ट में हमें हर प्राणी के प्रति वैसी ही भावना रखनी चाहिए। जैसे कि हम हमारे प्रति रखते हैं।
इंसान खुद अपने दोष के कारण ही दुखी रहते हैं। अगर वो चाहें तो अपनी गलती सुधार कर खुश रह सकते हैं।
एक सच्चा मनुष्य मां के समान विश्वसनीय, गुरु की तरह सम्माननीय और ज्ञानी व्यक्ति की तरह प्रिय होता है।
 जिस प्रकार हर कोई जलती हुई अग्नि से दूर रहता है उसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध मनुष्य से दूर रहती है।
कर्म के पास ना कोई कागज है और ना ही कोई किताब है। फिर भी उसके पास सारे जगत का हिसाब है।
किसी भी जीवित प्राणी को मारना नहीं चाहिए और ना ही उस पर शासन करने का प्रयत्न करना चाहिए।
आपको किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही आपको छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।
जो जागरूक नहीं है उसे सभी दिशाओं से डर है। जो सतर्क है उसे कहीं से कोई भी डर नहीं है।
 जीतने पर कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए और ना ही कभी हारने पर दुख करना चाहिए।
 साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।
अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म होता है, जो सभी जीवों के कल्याण की कामना करता है।
 वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है।
 केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता का अनुभव कर सकता है।
स्वयं पर विजय प्राप्त करना लाखों करोड़ों दुश्मनों पर विजय पाने से बेहतर है।
 इस दुनिया में हर एक प्राणी स्वतंत्र है। कोई भी किसी और पर निर्भर नहीं करता है।
 जीव हत्या ना करें, किसी को ठेस न पहुंचाएं। अहिंसा ही सबसे महान धर्म है।
 हर एक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है, आनंद बाहर से नहीं आता है।
केवल सत्य ही इस संसार का सार है।
हर एक प्राणी का सम्मान करना ही अहिंसा कहलाती है।
शांति और आत्म-नियंत्रण ही अहिंसा है।