संत कबीर दास के प्रेरणादायक विचार

30+ Latest Sant Kabir Das Quotes in Hindi

सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता। जिस तरह चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता।

सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता। जिस तरह चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता।

 उपास्य, उपासना-पद्धति, संपूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीं पर जाना संतों को प्रियकर होना चाहिए।

उपास्य, उपासना-पद्धति, संपूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीं पर जाना संतों को प्रियकर होना चाहिए।

गाली से झगड़ा संताप एवं मरने मरने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह संत है, और जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।

गाली से झगड़ा संताप एवं मरने मरने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह संत है, और जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।

बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। अगर वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।

बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। अगर वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।

 जिस भ्रम की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बांध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर-शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा है।

जिस भ्रम की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बांध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर-शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा है।

 पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है। सुखा काठ-लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अथार्त सह्रदय ही प्रेम भाव को समझता है। निर्मम मन इस भावना को क्या जाने?

पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है। सुखा काठ-लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अथार्त सह्रदय ही प्रेम भाव को समझता है। निर्मम मन इस भावना को क्या जाने?

 बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजा हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।

बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजा हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।

 थोडा सा जीवन है, उसके लिए मनुष्य अनेक प्रकार के प्रबंध करता है। चाहे राजा हो या निर्धन चाहे बादशाह-सब खड़े खड़े नष्ट हो गए।

थोडा सा जीवन है, उसके लिए मनुष्य अनेक प्रकार के प्रबंध करता है। चाहे राजा हो या निर्धन चाहे बादशाह-सब खड़े खड़े नष्ट हो गए।

जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उस स्थिति के समान हाउ जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।

जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उस स्थिति के समान हाउ जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।

 मान, महत्व, प्रेम रस, गौरव गुण और स्नेह-सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।

मान, महत्व, प्रेम रस, गौरव गुण और स्नेह-सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।

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