प्यार किया था तो प्यार का अंजाम कहाँ मालूम था, वफ़ा के बदले मिलेगी बेवफाई कहाँ मालूम था, सोचा था तैर के पार कर लेंगे प्यार के दरिया को, पर बीच दरिया मिल जायेगा भंवर कहाँ मालूम था।
ये शायरी की महफ़िल बनी है आशिकों के लिये, बेवफाओं की क्या औकात जो शब्दों को तोल सके।
खुदा ने पूछा क्या सज़ा दूँ उस बेवफा को, दिल ने कहा मोहब्बत हो जाए उसे भी।
जब तक न लगे बेवफाई की ठोकर, हर किसी को अपनी पसंद पर नाज़ होता है।
तेरी यादें हर रोज आ जाती है मेरे पास, लगता है तुमने बेवफाई नहीं सिखाई इनको।
तेरी बेवफाई ने मेरा ये हाल कर दिया है, मैं नहीं रोती लोग मुझे देख कर रोते हैं।
सुनो एक बार और मोहब्बत करनी है तुमसे, लेकिन इस बार बेवफाई हम करेंगे।
सिखा दी बेवफ़ाई करना ज़ालिम ज़माने ने तुम्हे, तुम जो भी सीख जाते हो हम पर ही आजमाते हो।