कितने सच कितने अफ़साने, कैसी ये रेखाओं की बस्ती है, वही मुकम्मल है ताने बाने, जो ये किस्मत बुना करती है। - Kismat Shayari

कितने सच कितने अफ़साने, कैसी ये रेखाओं की बस्ती है, वही मुकम्मल है ताने बाने, जो ये किस्मत बुना करती है।

Kismat Shayari

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