Munshi Premchand Quotes, Status, and Thoughts in Hindi

वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।

वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।

 कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है।

कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है।

दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।

दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।

 अमीरी की कब्र पर उगी गरीबी बड़ी जहरीली होती है।

अमीरी की कब्र पर उगी गरीबी बड़ी जहरीली होती है।

 आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।

आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।

निर्धनता प्रकट करना निर्धन होने से अधिक दुखदायी होता है।

निर्धनता प्रकट करना निर्धन होने से अधिक दुखदायी होता है।

आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है।

आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है।

दु:खी हृदय दुखती हुई आँख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।

दु:खी हृदय दुखती हुई आँख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।

 मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।

मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।

अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती है!

अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती है!

 विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।

विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।

 बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता।

बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता।

अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।

अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।

 माँ की ‘ममता’ और पिता की ‘क्षमता’ का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।

माँ की ‘ममता’ और पिता की ‘क्षमता’ का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।

 संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबो, उतना ही दबाते हैं।

संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबो, उतना ही दबाते हैं।

जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।

जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।

शारीरिक कष्टों का सहना उतना कठिन नहीं है, जितना कि मानसिक कष्टों का।

शारीरिक कष्टों का सहना उतना कठिन नहीं है, जितना कि मानसिक कष्टों का।

 जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है। उनका सुख छीनने में नहीं।

जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है। उनका सुख छीनने में नहीं।

संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।

संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।

 खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।

खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।

जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है!

जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है!

विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।

विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।

 मोहब्बत रूह की ख़ुराक है, यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को ज़िंदा कर देती है।

मोहब्बत रूह की ख़ुराक है, यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को ज़िंदा कर देती है।

सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।

सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।

देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।

देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।

 क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता है। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है।

क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता है। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है।

 कुल की प्रतिष्ठा सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।

कुल की प्रतिष्ठा सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।

 क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात कहने के बजाय दूसरों के ह्रदय को ज़्यादा दुखाता है।

क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात कहने के बजाय दूसरों के ह्रदय को ज़्यादा दुखाता है।

कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते हैं।

कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते हैं।

 मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।

मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।

जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।

जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।

कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है।

कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है।

जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्‍जत और मर्यादा सब ढोंग है।

जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्‍जत और मर्यादा सब ढोंग है।