Munshi Premchand Quotes

Munshi Premchand Quotes with Images

Munshi Premchand Quotes in Hindi

जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्‍जत और मर्यादा सब ढोंग है।

कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है।

जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।

मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।

कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते हैं।

क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात कहने के बजाय दूसरों के ह्रदय को ज़्यादा दुखाता है।

कुल की प्रतिष्ठा सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।

क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता है। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है।

देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।

सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।

मोहब्बत रूह की ख़ुराक है, यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को ज़िंदा कर देती है।

विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।

जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है!

खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।

संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।

जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है। उनका सुख छीनने में नहीं।

शारीरिक कष्टों का सहना उतना कठिन नहीं है, जितना कि मानसिक कष्टों का।

जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।

संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबो, उतना ही दबाते हैं।

माँ की ‘ममता’ और पिता की ‘क्षमता’ का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।

अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।

बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता।

विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।

अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती है!

मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।

दु:खी हृदय दुखती हुई आँख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।

आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है।

निर्धनता प्रकट करना निर्धन होने से अधिक दुखदायी होता है।

आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।

अमीरी की कब्र पर उगी गरीबी बड़ी जहरीली होती है।

दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।

कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है।

वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।

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जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्‍जत और मर्यादा सब ढोंग है।
कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता, कर्तव्य पालन में ही चित्त की शांति है।
जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।
 मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।
कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते हैं।
 क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात कहने के बजाय दूसरों के ह्रदय को ज़्यादा दुखाता है।
 कुल की प्रतिष्ठा सदव्यवहार और विनम्रता से होती है, हेकड़ी और रौब दिखाने से नहीं।
 क्रोध मौन सहन नहीं कर सकता है। मौन के आगे क्रोध की शक्ति असफल हो जाती है।
देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना पड़ेगा।
सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।
 मोहब्बत रूह की ख़ुराक है, यह वह अमृत है जो मरे हुए भावों को ज़िंदा कर देती है।
विजयी व्यक्ति स्वभाव से बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।
जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है!
 खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।
संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।
 जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में है। उनका सुख छीनने में नहीं।
शारीरिक कष्टों का सहना उतना कठिन नहीं है, जितना कि मानसिक कष्टों का।
जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
 संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता, जितना दबो, उतना ही दबाते हैं।
 माँ की ‘ममता’ और पिता की ‘क्षमता’ का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।
अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।
 बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता।
 विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।
अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती है!
 मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।
दु:खी हृदय दुखती हुई आँख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।
आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है।
निर्धनता प्रकट करना निर्धन होने से अधिक दुखदायी होता है।
 आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपना घर याद आता है।
 अमीरी की कब्र पर उगी गरीबी बड़ी जहरीली होती है।
दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।
 कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है।
वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।