कमाल की अदा है उसमे, वार भी दिल पर राज भी दिल पर।
अपनी कीमत उतनी रखिए, जो अदा हो सके, अगर अनमोल हो गए तो तन्हा हो जाओगे।
राज दिल में छुपाये रहते हैं, अपने आँखों से छलकने नहीं देते. क्या ज़ालिम अदा है उस हसीं की, ज़ख्म भी देते हैं और तड़पने नहीं देते।
क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी. क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा।
बेताब कर गई मुझे जादू भरी नजर. मैं उनके देखने की अदा देखता रहा।
सर झुकाने से नमाज़ें अदा नहीं होती, दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए।
एक अदा आपकी दिल चुराने की, एक अदा आपकी दिल में बस जाने की, चेहरा आपका चाँद, और जिद हमारी चाँद को पाने की ।
तहज़ीब में भी उसकी क्या ख़ूब अदा थी, नमक भी अदा किया तो ज़ख़्मों पर छिड़क कर।
अदा-ए-मोहब्बत सजदा-ए-इश्क, नाम कुछ भी हो. मतलब तुम्ही से है।
मार डाला तेरी अदा निराली ने, के नागन बनके डंस लिया तेरी जुल्फ काली ने।
हमें ये दिल हारने की बीमारी न होती, अगर उनकी दिल जीतने की अदा इतनी प्यारी न होती।
फिदा हो जाऊँ तेरी किस-किस अदा पर, अदायें लाख तेरी, बेताब दिल एक मेरा।
जो दर्द तुम हमें किश्तों-किश्तों में दे रहे हो वो आलम क्या होगा जब हम ब्याज सहित अदा करेंगे।
सुनो, फिर से कहो ना आज, उसी अदा के साथ, मुझे सिर्फ तुम से मोहब्बत है।
वाह मौसम आज तेरी अदा पर दिल खुश हो गया, याद मुझे आई और बरस तू गया ।
ये उड़ती ज़ुल्फें, ये बिखरी मुस्कान, एक अदा से संभलूँ,तो दूसरी. होश उड़ा देती है।
अपने जख्मों की नुमाइश करना एक इक अदा है, दुनियां को पता तो चले, यह मशहूर इश्क आखिर क्या बला है।
मेरी ये अदा दुनिया को रास नहीं आई, दिल तो टूटा है पर आवाज़ नहीं आई।
ना मेरा प्यार कम हुआ, ना उनकी नफरत, अपना अपना फर्ज था, दोनों अदा कर गये।
मेरी पिक मेरी अदा, पर, तुम क्या.ज़माना भी फ़िदा हैं।
हमारी अदा पे तो नफरत करने वाले भी फ़िदा हैं तो फिर सोच प्यार करने वालो का क्या हाल होगा।
मुझे उस पगली की ये नादान अदा खूब भाती हैं, नाराज़ मुझसे होती हैं और गुस्सा सबको दिखाती हैं।
अदा अदा तिरी मौज-ए-शराब हो के रही निगाह-ए-मस्त से दुनिया ख़राब हो के रही
दिल मेरा चुराकर वो बड़ी अदा से बोली, वापिस लेने आए तो जान भी ले लुंगी।
दुपट्टा क्या रख लिया उसने सर पर, वो दुल्हन नजर आने लगी, उसकी तो अदा हो गई और जान हमारी जाने लगी।
बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब'अद जी तो ये चाहता है तिरी मान जाइए
ये अदाएँ ये इशारे ये हसीं क़ौल-ओ-क़रार कितने आदाब के पर्दे में है इंकार की बात
सुन पगली मेरी बोली एक अदा हैं. जिसपे तेरे जैसी 100 छोरीया फिदा हैं।
फूल कह देने से अफ़्सुर्दा कोई होता है सब अदाएँ तिरी अच्छी हैं नज़ाकत के सिवा
ना अदा से होंगी ना वफा से होंगी, अब मोहब्बत जिससे भी होगी एग्जाम के बाद होंगी।
पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वो इस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए
मोहब्बत को छोड़कर क्या नही मिलता बाजार में, हुस्न जिस्म चुंबन वादा अदा जो मन करे खरीद लो।
बनावट वज़्अ'-दारी में हो या बे-साख़्ता-पन में हमें अंदाज़ वो भाता है जिस में कुछ अदा निकले
तेरे अदाओ पे मरता हूँ, लव तुझे लव मैं करता हूँ।
कुछ इस अदा से मोहब्बत-शनास होना है ख़ुशी के बाब में मुझ को उदास होना है
तुम्हारे तो रूठने का मतलब अदा हुयी, लेकिन हमारी तो जान निकल जाती हैं।
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