Sant Kabir Das Quotes, Status, and Thoughts in Hindi
मांगना मरने के समान है इसलिए कभी भी किसी से कुछ मत मांगो।
सबके बारे में भला सोचो। न किसी से ज्यादा दोस्ती रखो और न ही किसी से दुश्मनी रखो।
वाणी एक अमूल्य रत्न के समान है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर अथार्त सोच समझकर हो उसे मुंह से बाहर आने देना चाहिए।
उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बांध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।
एक दिन ऐसा जरुर आएह जब सबसे बिछुड़ना पड़ेगा। हे राजाओं! हे छत्रपतियों! तुम अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते।
आपकी कदर तभी होगी जब आपकी कोई कदर करेगा।
न तो ज्यादा बोलना अच्छा है और न ज्यादा चुप होना अच्छा है।
पेशंस का होना एक इंसान में बहुत ही जरुरी है।
जो कल करना है उसे आज करो जो आक करना है उसे अभी करो।
गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है, क्योंकि गुरु की शिक्षा के कारण ही भगवान के दर्शन होते हैं।
यह मनुष्य का स्वभव है कि जब वह दूसरों के दोष देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
मरने के बाद तुमसे कौन देने को कहेगा? अतः निश्चित पूर्वक परोपकार करो, यही जीवन का फल है।
इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह संबंध न जोड़ो। सदगुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।
धर्म करने से धन नहीं घटता, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटता नहीं। धर्म करके खुद देख लो।
उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर। साकट और कुत्तों को उलट कर उत्तर न दे।
शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना तो सरल है, किन्तु मन को योगी बनाना कुछ ही व्यक्तियों का काम है। अगर मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।
कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया। कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है।
हे मानव! तू क्यों गर्व करता है? यह का अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर भी तुझे मार डाले।
यह मानव का नश्वर शरीर अंत समय में लकड़ी की तरह जलता है और केश घास की तरह जल उठते हैं। पुरे शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से बहुत भर जाता है।
इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है, वह अस्त भी होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह पक्का जाएगा।
सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता। जिस तरह चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता।
उपास्य, उपासना-पद्धति, संपूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीं पर जाना संतों को प्रियकर होना चाहिए।
गाली से झगड़ा संताप एवं मरने मरने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह संत है, और जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।
बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। अगर वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।
जिस भ्रम की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बांध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर-शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा है।
पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है। सुखा काठ-लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अथार्त सह्रदय ही प्रेम भाव को समझता है। निर्मम मन इस भावना को क्या जाने?
बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजा हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।
थोडा सा जीवन है, उसके लिए मनुष्य अनेक प्रकार के प्रबंध करता है। चाहे राजा हो या निर्धन चाहे बादशाह-सब खड़े खड़े नष्ट हो गए।
जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उस स्थिति के समान हाउ जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।
मान, महत्व, प्रेम रस, गौरव गुण और स्नेह-सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।
जो जाता है उसे जाने दो। तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो। अगर तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे।
यह शरीर कच्चा घडा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था। जरा सी चोट लगते ही यह फूट गया। कुछ भी हाथ नहीं आया।
अहंकार बहुत बुरी वस्तु है। हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ। मित्र, रुई में लिपटी अग्नि-अहंकार-को मैं कब तक अपने पास रखूं?