दिल कही लगता नहीं जान है कि जाती नही एक वक़्त गुज़र गया, पर वो है कि लौट के आती ही नहीं।
कोई वादा नहीं फिर भी प्यार है जुदाई के बावजूद भी तुझ पे अधिकार है
किसी से जुदा होना इतना आसान होता तो रूह को जिस्म से लेने फ़रिश्ते नहीं आते
तेरे दर्द का यूँ असर हो रहा है जुदाई में सारा शहर रो रहा है
ओ जाने वाले तुम्हें क्या ख़बर है उधर तुम जा रहे इधर जान जा रही
जाने वाले एक बात तो बता क्या हम कभी याद भी आयेंगें
इश्क और इबादत कहां जुदा है जिस पर आ जाए वहीं खुदा है!
जुदाई तुझसे इश्क में सही नहीं जाती जो दिल में बात है वो लबों से कही नही जाती !
जुदाई का जहर पी लेते है क्योकि हम मरते नही जी रहते है !
मेरी हर बात से अब इग्नोर करने लगा है वो जुदाई का लगता है मन बना चुका है वो !
तेरी जुदाई भी हमें प्यार करती है तेरी याद बहुत बेकरार करती है !
आओ किसी रोज मुझे टूट के बिखरता देखो मेरी रगों में ज़हर जुदाई का उतरता देखो !
जिगर है छलनी-छलनी आँखें लहू-लहू हैं तेरी जुदाई ने मुझे इस कदर तबाह कर दिया !
आप को पा कर अब खोना नहीं चाहते इतना खुश हैं कि अब रोना नहीं चाहते !
कभी कभी तो ये दिल में सवाल उठता है कि इस जुदाई में क्या उस ने पा लिया होगा !
इश्क – मोहब्बत तो सब करते है गम-ऐ-जुदाई से सब डरते हैं !
उनकी तस्वीर को सीने से लगा लेते है इस तरह जुदाई का गम उठा लेते है
इतना बेताब न हो मुझसे बिछड़ने के लिए तुझे आँखों से नहीं मेरे दिल से जुदा होना है !
ज़माना बन जाए कागज़ का और समंदर हो जाए स्याही का फिर भी कलम लिख नही सकती दर्द तेरी जुदाई का !
उसकी जुदाई को लफ़्ज़ों मे कैसे बयान करे वो रहती दिल में धडकती दर्द मे और बहती अश्क में..
जुदाई हो अगर लम्बी तो अपने रूठ जाते है बहुत ज्यादा परखने से भी रिश्ते टूट जाते है !
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की !
जिस दिन से जुदा वह हमसे हुए इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया है चाँद का मुंह भी उतरा -उतरा तारो ने चमकना छोड़ दिया !
ना मेरी नीयत बुरी थी ना उसमे कोई बुराई थी सब मुक़द्दर का खेल था बस किस्मत में जुदाई थी !
मुस्कुराने कि आदत भी कितनी महेगी पड़ी हमे छोड़ गया वो ये सोच कर कि हम जुदाई मे खुश है !
तेरे जाने के बाद सनम सोचता हूँ की कैसे जिऊंगा मैं तुझसे किया है इसी लिए वादा ये जुदाई का ज़हर भी पिऊंगा मैं !
मुझसे मोहब्बत नहीं तो रोते क्यों हो तन्हाई में मेरे बारे में सोचते क्यों हो !
अब जुदाई के सफ़र को मेरे आसान करो तुम ख़्वाब में आकर मुझे परेशान न करो !
जुदाई सहने का अंदाज कोई मुझसे सीखे रोते है मगर आँखो मे आँसूं नही होते !
यूं तो किसी चीज के मोहताज नही हम बस एक तेरी आदत सी हो गयी है !
ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं मैं तेरी जुदाई में इस तरह भी रोता हूँ !
आपकी आहट दिल को बेकरार करती है नज़र तलाश आपको बार-बार करती है !
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब, वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब।
मुझे छोड़ने के लिए इतना बेताब मत होना तुझे मेरे दिल से जुदा होना है तेरी नज़रों से नही !
काश यह खूनी अलगाव न होता हे भगवान आपने यह चीज नही बनाई होगी हम उनसे न मिलेंगे न प्यार करेगे आपका जीवन फिर से अलग नही होगा !
इन दूरियों को जुदाई मत कहना, इन खामोशियों को रुसवाई मत कहना, हर मोड़ पर याद करेंगे आपको, ज़िन्दगी में साथ नहीं दिया तो बेवफाई मत कहना।
सर्द रातों में सताती है जुदाई तेरी, आग बुझती नहीं सीने में लगाई तेरी, तू तो कहता था बिछड़ के सुकून पा लेंगे, फिर क्यों रोती है मेरे दर पे तन्हाई तेरी।
मैं उनसे कहने आया हूं कि मै तुम्हारे बिना रहूंगा उनके अलग होते ही जीवन में जान आ गई !
आप को पा कर अब खोना नहीं चाहते, इतना खुश हैं कि अब रोना नहीं चाहते, ये आलम है हमारा आप की जुदाई में, आँखों में नींद है और सोना नहीं चाहते।
जुदाइयों के जख्म दर्द-ए-जिंदगी ने भर दिए, तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया।
जुदा हो कर भी जी रहे हैं मुद्दत से, कभी कहते थे दोनों कि जुदाई मार डालेगी।
जिनकी आंखें सदियों से कटी हुई थी उन्होंने सदियों का अलगाव दिया है !
कोशिश तो होती है के, तेरी हर ख्वाइश पूरी करूँ, पर डर लगता है के तू ख्वाइश में मुझसे जुदाई न मांग ले।
दिल को आता है जब भी ख्याल उनका, तस्वीर से पूछते हैं फिर हाल उनका, वो कभी हमसे पूछा करते थे जुदाई क्या है, आज समझ आया है हमें सवाल उनका।
कट ही गई जुदाई भी कब ये हुआ कि मर गए, तेरे भी दिन गुजर गए मेरे भी दिन गुजर गए।
बहुत से लोग बिछड़े हुए हैं आप भी सही कह रहे है अब ऐसी बात पर जीवन को आश्चर्य क्यों हो !
जुदाईया देने की बजाय मार देना था वो ज़्यादा सही होता दूर है उनसे मगर ज़िंदा है क्यूंकि आ गए वो अगर !
बिन आपके कुछ भी अच्छा नहीं लगता, कुछ पल कि जुदाई भी सही नहीं जाती, तुम खुद ही समझ लो गहराई प्यार की, लिख कर यह बात मुझसे कहीं नहीं जाती।
दिल जुड़ा हो तो मुलाक़ात से फिर क्या हासिल, यूं तो सेहरा भी समंदर से मिला करते हैं।
दिल से निकली ही नहीं शाम जुदाई वाली तुम तो कहते थे बुरा वक़्त गुज़र जाता है !
दर्द-ए-जुदाई सहने कि आदत सी हो गयी, ग़म न किसी से कहने कि आदत सी हो गयी, होकर जुदा भी यार ने ले लिया जीने का वादा, रोते हुए भी जिन्दा रहने की आदत सी हो गई।