उन आँसुओं का समंदर है मेरी आँखों में, जिन आँसुओं में है ठहराव भी, रवानी भी।
कह देना समुन्दर से हम ओस के मोती हैं। दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आएंगे।
होता होगा तुम्हारी दुनियाँ में गहरा समंदर हमारे यहाँ इश्क़ से गहरा कुछ भी नहीं !
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा!
समंदर की तरह पहचान है हमारी उपर से खामोश अंदर से तुफान!
जब चल पड़े सफ़र को तो फिर हौंसला रखो। सहरा कहीं, कहीं पे समंदर भी आएंगे।
आओ सजदा करें आलमे मदहोशी में लोग कहते हैं कि सागर को खुदा याद नहीं।
वो नदी थी वापस मुड़ी नहीं। मैं समंदर था आगे बढ़ा नहीं।
गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक़ से दरिया लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता!
"इश्क का समंदर भी क्या समंदर है, जो डूब गया वो आशिक जो बच गया वो दीवाना। जो तैरता ही रह गया वह पति।
तू समन्दर है तो क्यूँ आँख दिखाता है मुझे और से प्यास बुझाना अभी आता है मुझे!
मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में। मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं।
वक्त ढूँढ रहा था मुझे हाथों में खंजर लिए। मैं छुप गई आईने में आँखों में समंदर लिए।
वो बहने के लिये कितना तड़पता रहता है लेकिन समंदर का रुका पानी कभी दरिया नहीं बनता !
"सुकून अपने दिल का मैंने खो दिया। खुद को तन्हाई के समंदर में डुबो दिया।
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ !
ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को समंदर कर दे। या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे।
जिसको देखूँ तेरे दर का पता पूछता है क़तरा क़तरे से समंदर का पता पूछता है!
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समंदर में। निकल आती हैं मौजें हम जिसे साहिल समझते हैं।
उन्हें ठहरे समुंदर ने डुबोया जिन्हें तूफ़ाँ का अंदाज़ा बहुत था !
अगर है गहराई तो चल डुबा दे मुझ को। समंदर नाकाम रहा अब तेरी आँखो की बारी है।
कोई अपनी ही नजर से तो हमें देखेगा एक कतरे को समन्दर नजर आयें कैसे !
सब हवाएं ले गया मेरे समंदर की कोई। और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया।
लगी है प्यास तो चलो रेत निचोड़ी जाए। अपने हिस्से में कोई समंदर नहीं आने वाला।
दर्द का समंदर जब आँखों में उतर आता है तभी तो इंसान जिंदगी में कामयाबी को पाता है!
बुझी न प्यास तो यूँ ख़त्म ज़िंदगी कर ली। नदी ने जा के समंदर में ख़ुदकशी कर ली।
तुम समंदर हो, दिल मेरा दरिया है। साँसे चलती है दिल में जो मेरे। उसका तू ही तो जरिया है।
क़दम दर क़दम ज़िन्दगी दौरे इम्तिहान है कहीं सहरा कहीं समन्दर कहीं गर्दिशे अय्याम है!
ग़मों के नूर में लफ़्जों को ढालने निकले। गुहरशनास समंदर खंगालने निकले।
समंदर बेबसी अपनी किसी से कह नहीं सकता, हजारों मील तक फैला है, फिर भी बह नहीं सकता !
पलकों पर रुका है समंदर खुमार का, कितना अजब नशा है तेरे इंतज़ार का.
समंदर ने कहा मुझको बचा लो डूबने से। मैं किनारे पे समन्दर लगा के आया हूँ।
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