ये दिल्लगी ना जाने क्यों सताती है, हम तो इश्क करते हैं, ना जाने वो क्यूं तड़पाती है।
क्या हैं तुझमें ऐसा, तुझको ना भूल पांऊ, दिल्लगी की सजा हैं, बस यही सोचता हूं।
हम ने जाना था लिखेगा तू कोई हर्फ़ ऐ ‘मीर’ पर तेरा नामा तो इक शौक़ का दफ़्तर निकला !
दिल्लगी करते है लोग, फिर भी दिल जलाते हैं, जब पराया ही करना होता हैं, तो अपना क्यों बनाते हैं।
कुछ पाबंदी भी लाज़मी है दिल्लगी के लिए किसी से इश्क़ अगर हो तो बेपनाह न हो !
इश्क हो गर तभी हाथ बढाना, दिल्लगी तो बहुत कर के चले गये।
यदि आप बदले में कुछ की उम्मीद करते हैं तो इसे प्यार नहीं व्यापार और दिल्लगी कहा जाता है।
बरसो बाद पता चला मुझे मेरी कहानी में, प्यार नही सिर्फ दिल्लगी थी।
दिल्लगी कर जिंदगी से ए दिल लगा के चल जिंदगी है थोड़ी हमेशा मुस्कुराते चल !
रूहों की रूहानियत में दिलों की दिल्लगी में, कहाँ इतना मज़ा है जनाब जो आँखों की गुस्ताखियों में।
माना दोस्त कि दिल्लगी तेरी फ़ितरत नहीं फ़िर वाबस्तगी मुझसे क्यों तेरी हसरत नहीं!
इश्क़ से कुछ इस तरह साथ छुटा, की दिल्लगी भी अब बेगानी लगती है।
तुम्हारी दिल्लगी देखो हमारे दिल पर भारी है तुम तो चल दिए हंसकर यहाँ बरसात जारी है!
बेईमान आँखों से भी कोई भा गया, देखो न मेरा दिल दिल्लगी पे आ गया।
मैं उसके प्यार में खो गया और मैं ऐसे ही खोना चाहता था और ये दिल्लगी मुझे कहाँ लेके जाएगी।
मैंने तो इज़हार मोहब्बत का किया था, ना जाने क्यूँ तुमने दिल्लगी समझ लिया।
क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ नाराज़ दिल-लगी में जो वो इक ज़रा हुए!
करते रहे वो दिल्लगी न देखा कितनी दिल को लगी।
कभी प्यार करना कभी लड़ाई करना वो ऐसे ही करते हैं दिल्लगी मुझसे!
दिल्लगी करते है लोग, यहां दिल बहलाने को, कौन वादा करता है यहां ज़िन्दगी भर निभाने को।
नज़रों का क्या कसूर जो दिल्लगी तुमसे हो गयी तुम हो ही इतने प्यारे कि मोहब्बत तुमसे हो गयी !
मोहब्बत में उस दौर से गुज़रा है ये दिल, के फिर दिल्लगी करना है मुश्किल।
मिले वो यार जो दिल की लगा कर हमें बहला रहे हैं दिल्लगी से !
मुझे कोई सपना मत समझना जिसे तुम अगली सुबह भूल जाओ ओ दिलबर साथ निभाना दिल्लगी न करना!
जिसे जानता नहीं वो शख्स क्यों अपना सा लगता है, है ये दिल्लगी या पिछले जन्म का रिश्ता है।
अभी तक तो बस दिल्लगी पर लिखता हूं, कोई करे मोहब्बत तो पल पल पर लिखूं।
दिल तोडना किसी का ये जिदंगी नही इबादत थी मेरी कोई दिल्लगी नही!
मोहब्बत के नाम पर ज़माने में दिल्लगी करते हैं लोग, रूह से कोई वास्ता नहीं यहाँ जिस्म की बंदगी करते हैं लोग।
मज़ा आ रहा है दिलबर से दिल्लगी में, नज़रे भी हमी पे है और पर्दा भी हमी से है!
न जाने क्यों तुम्हें अपना मानता हूँ मैं, दिल्लगी तो न थी ये जानता हूँ मैं।
दिल्लगी करना जरा देख के करना कहीं तुम्हारी दिल्लगी में कहीं देर न हो जाये!
नयी यादों की जरुरत नहीं पड़ती उन्हें, जिनकी पुराने ज्खमों के साथ दिल्लगी हो।
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